नज़रियाः सरकार को सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की ही चिंता क्यों, देश की सभी महिलाओं की चिंता क्यों नहीं ?
तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाना और हज सब्सिडी खत्म करना, दोनों ऐसे फैसले हैं जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद सरकार की ओर से लिए गए। तीन तलाक तो ख़ैर सीधे मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा था. सरकार ने हज सब्सिडी खत्म करने के फैसले को भी मुस्लिम लड़कियों के साथ जोड़ दिया, ये कहते हुए कि हज सब्सिडी ख़त्म करने से बचा पैसा मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर किया जाएगा, अब ये बात अलग है कि सरकारी स्कूलों में लड़कियों की शिक्षा पहले से ही मुफ़्त है।
सुप्रीम कोर्ट की पहल को ऐसे दिखाना कि सरकार ने ही ये फैसले किए हैं और मुस्लिम महिलाओं की वही सबसे बड़ी खैरख्वाह है. 2019 आम चुनाव के मद्देनजर एक नया वोट बैंक जोड़ने की कोशिश में इसे ख़ालिस सियासी कवायद माना जा सकता है. समाज कोई भी हो वो पुरुष, महिलाओं और यहां तक कि थर्ड जेंडर सभी से मिल कर बना होता है.
किसी एक ही हिस्से के बारे में सोचा जाए तो वो समाज सही मायने में आगे नहीं बढ़ सकता. पिछड़ा और विकास से अगर अछूता होता है तो वो पूरा परिवार होता है. खुशहाल होता है तो भी पूरा परिवार होता है. परिवार के सदस्यों को उनके जेंडर के हिसाब से अलग नहीं बांटा जा सकता.
ये सच है कि मुस्लिम महिलाओं को उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. लेकिन क्या दूसरे धर्मों में महिलाओं के साथ ये बिल्कुल नहीं होता. समस्या धर्मविशेष से जुड़ी नहीं है बल्कि समूचे समाज की पुरुष प्रधान सोच में है. ज़रूरत है तो इस स्थिति को देश में सर्वत्र बदलने की है चाहे वो घर हो या काम करने की जगह सरकार को सिर्फ मुस्लिम महिलाओं चिंता ही क्यों, देश की सभी महिलाओं की क्यों नहीं.
अगर वो सच में सभी महिलाओं की भलाई चाहती है तो और सब काम छोड़ सबसे पहले महिला आरक्षण बिल को पास कराए. अगर संसद में कोई राजनीतिक दल इस काम में रोड़े अटकाता है तो सरकार अध्यादेश के रूट से महिलाओं के लिए आरक्षण को कानूनी जामा पहनाए. क्या ऐसा हो पाएगा ?
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nice