Tuesday, 9 January 2018

नियोग की पद्धति

              नपुंसक पति की इच्छा से जुड़ी है          'नियोग' की पद्धति

          नियोग का अर्थ 'नियत करना या काम में लाना होता है।

                अर्धनारीश्वर मंदिर में होने वाले धार्मिक  ‘नियोग’ से संबंधित है। जिसका पति कभी संतान को जन्म नहीं दे पाएगा इसलिए वह अपने पति की मर्जी के बिना ही संतान को जन्म देने के लिए ‘नियोग’ का सहारा ले लेती है।
               खैर हमारा उद्देश्य किसी भी प्रकार की बहस का हिस्सा बनकर, सही या गलत जैसे निष्कर्ष पर पहुंचने का नहीं है। हम तो बस आपको भारत की इस प्राचीन परंपरा ‘नियोग’ से अवगत करवाने की कोशिश कर रहे हैं।  अगर कोई पुरुष वीर्यहीन या नपुंसक है तो उसकी पत्नी को संतान के जन्म के लिए एक अन्य विवाह करने की अनुमति तो नहीं, लेकिन गर्भाधान करने के लिए एक समगोत्रीय पुरुष के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने की सुविधा जरूर उपलब्ध करवाई जाती थी। इस सुविधा को ‘नियोग’ के नाम से जाना जाता है। जिसका आशय किसी भी प्रकार के यौन आनंद  देने से है। नियोग के लिए किस पुरुष को चुना जाएगा, इसका निर्णय भी उसका पति ही करता था। 

‘नियोग’ भारतीय समाज में व्याप्त एक बेहद प्राचीन परंपरा है, जिसकी उपस्थिति रामायण से लेकर महाभारत काल तक मिलती है। आज भी बहुत से भारतीय समुदायों में ‘नियोग’ द्वारा संतानोत्पत्ति की प्रक्रिया को पूरी धार्मिक परंपरा के अनुसार अपनाया जा रहा है। सर्वप्रथम नियोग को मनुस्मृति में उल्लिखित किया गया था। जिसके अनुसार यह एक ऐसी प्रक्रिया है जब पति की अकाल मृत्यु या उसके संतान को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था में स्त्री अपने देवर या फिर किसी समगोत्रीय, उच्चकुल के पुरुष के द्वारा गर्भ धारण करती है।स्त्री अपने पति की इच्छा और अनुमति मिलने के बाद ही ऐसा कर सकती है।नियोग के द्वारा जन्म लेने वाली संतान, नाजायज होने के बावजूद भी जायज कहलाती है। उस पर उसके जैविक पिता का कोई अधिकार ना होकर उस पुरुष का अधिकार कहलाया जाएगा, जिसकी पत्नी ने उसे जन्म दिया है।

            भारतीय पौराणिक इतिहास में नियोग की महत्ता को इस बात से बेहतर समझा जाता है कि जिस प्रकार रामायण के बिना एक आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती उसी प्रकार नियोग के बिना महाभारत की कल्पना कर पाना असंभव है।
महाभारत में विचित्रवीर्य की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद उसकी दोनों पत्नियों, अम्बिका और अम्बालिका नियोग का सहारा लेकर संतान को जन्म देती हैं। इस प्रक्रिया के लिए वेद व्यास को नियुक्त किया जाता है। धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म नियोग द्वारा हुआ था
इसके अलावा अपने पति पांडु के संतान को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था में उसकी पत्नी कुंती नियोग के जरिए पांडवों को जन्म देती है। माइथोलॉजी के अनुसार, इस नियोग में नियुक्त किए गए पुरुष विभिन्न देवता थे। कुंती के अलावा पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने भी नियोग के सहारे ही नकुल और सहदेव को जन्म दिया था। पौराणिक कहानियों के प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक की किताब ‘दी प्रेग्नेंट किंग’ में भी सूर्यवंशी राजा युवनाश्व की कहानी दर्शायी गई है, जो तीन पत्नियों के बावजूद संतान को जन्म नहीं दे पा रहा था। ऐसे में युवनाश्व के महल में ‘नियोग’ के द्वारा संतान को जन्म देकर वंश को आगे बढ़ाने की बातें उठने लगी थीं। महाभारत और रामायण काल से इतर, भारत के इतिहास में कुछ ऐसे पन्ने भी दफ्न हैं, जो भले ही नियोग से जुड़े रहे लेकिन पुरुषत्व पर चोट ना पहुंचे, इसलिए उन कहानियों को दबा दिया गया। कई ऐसे राजा-महाराजा हुए जिन्होंने खुद अक्षम होने की हालत में अपने बेहद विश्वसनीय सहयोगी या सेवक को नियोग के लिए नियुक्त किया।




















































































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